समस्त प्रकार की शुद्धि के बाद निसिहि निसिहि बोल कर भगवान के दरबार में प्रवेश करना चाहिए । जहाँ तक संभव हो भगवान की अष्टप्रकारी पूजा करना चाहिए ( भगवान की केसर पूजा संबधी आवश्यक जानकारियां ) लेकिन अगर कुछ प्रतिकूलता हो तो फिर पुरे मन और श्रद्धा से जिन दर्शन का लाभ लेना चाहिए । जिन मंदिर में दर्शन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है |
मंत्र जाप कैसे करे ?
यदि परमात्मा के समक्ष बैठकर जाप करना हो तो निम्न ढंग से करें:
- जमीन पर शुद्ध ऊनी आसन बिछाकर बैठें।
- पद्मासन या सुखासन (पालथी लगाकर) बैठें। कमर से झुकें नहीं। चेहरे को भी सीधा रखें।
- माला दाहिने हाथ की उँगलियों पर अँगूठे के पोर से फेरें। नाखून का स्पर्श माला को न हो, इसकी पूरी सावधानी रखें।
- माला नाभि से नीचे नहीं, नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए एवं सीने से 4 अंगुल दूर सामने रखें।
- प्लास्टिक की माला न फेरें।
- जाप करते समय आँखें परमात्मा के सामने या दो भौंहों के बीच, या नाक पर रखें या फिर आँखें मूँद लें। इधर-उधर ताँकझाँक न करें।
- जाप करते समय माला नीचे न गिराएँ। जमीन पर न रखें, आसन पर या डिब्बी में रखें।
घंटनाद कब और क्यों ?
दर्शन करने के पश्चात बाहर निकलते समय घंट बजाकर, परमात्मा के दर्शन-पूजन करने से उत्पन्न खुशी व प्रसन्नता अभिव्यक्त की जाती है। पर उसमें इतनी सावधानी रखनी चाहिए कि अपने घंटनाद से किसी की प्रार्थना व पूजा मे खलल न पहुँचे। बहुत जोरों से घंटनाद नहीं करना चाहिए।
देव-देवी के दर्शन
देव-देवी (अधिष्ठायक एवं शासनरक्षक देव-देवी) के समझ खमासमण न दें पर केवल साधर्मिक होने के नाते अभिवादन हेतु सिर झुकाकर नमस्कार करें पर यदि देव-देवी की मूर्ति के साथ संलग्न परमात्मा की मूर्ति हो तो खगासमण दे सकते हैं। अक्सर अम्बिकादेवी के साथ नेमनाथ भगवंत, चक्रेश्वरी देवी के साथ भगवान ऋषभदेव की व पद्मावती के साथ भगवान पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ उत्कीर्ण होती हैं।
मंदिर/चैत्य से कैसे निकलें?
इसके बाद मंदिर से बाहर निकलते वक्त परमात्मा की तरफ पीठ न करते हुए उलटे पाँव या तिरछा होकर निकलें। मंदिर के बाहर आकर चौकी पर या सीढ़ियों के पास बनी हुई बैठक पर एक-दो मिनट रुकें। बैठकर या खड़े आँखें मूँदकर बंद आँखों के परदे पर परमात्मा की प्रतिमा को उभरने दें…। यदि हमने स्वस्थ तन-मन-नयन से परमात्मा के दर्शन किए हैं, तो निश्चित ही परमात्मा की छवि उभरेगी। यह एक सूचक है।
आरती मंगलदीप क्यों?
यदि शाम के समय हम मंदिर में गए हों… और आरती का समय हो गया हो… तो अवश्य आरती व मंगलदीप उतारने चाहिए। आरती से मन की अरति-अस्वस्थता दूर हो जाती है… मन एवं प्राण परमात्मा के प्रेम के लिए आर्त्त बनते हैं… आर्द्र बन जाते हैं।
आरती की थाली दोनों हाथों में लेकर बहुमान के साथ भावविभोर होकर आरती बाएँ हाथ की तरफ से ऊपर उठाएँ और दाहिने हाथ की तरफ से नीचे लाकर वापस ऊपर उठाएँ। इस तरह आरती का गान गाने के साथ-साथ ढाई बार ऊपर से नीचे घुमाना है। ढाई वर्तुल कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रतीक है।
आरती होने के पश्चात मंगलदीप उतारने का है। वास्तव में मंगलदीप अग्नि की ऊपर उठती ज्वाला भी भाँति ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर लाना-ले जाना है (वर्तुलाकार नहीं।) पर फिलहाल आरती की भाँति ही वर्तुलाकार घुमाने का रिवाज है। यदि अन्य जन उपस्थित हों तो उन्हें मंगलदीप उतारने का मौका दें।
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