धन्य त्रियोदशी (धनतेरस) जी हाँ ! जैन धर्म मे धन्य तेरस का बहुत महत्व है लेकिन वैसा नहीं जैसा हम लोग मानते है की लक्ष्मी तथा धन की पूजा करो, जिस दिन भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि अंतिम बार खीरी थी उस दिन त्रियोदशी थी, इसलिए उस दिन को धन्य माना गया क्योकि उस दिन के बाद भगवान ने योग निरोध किया तथा अमावस्या को मोक्ष प्राप्त कर लिया, लेकिन समय के प्रभाव से यह धन्य त्रयोदशी – धनतेरस में फिर सिर्फ धन की पूजा बन कर रह गई
गणानां ईश:, गणेश:, गणधर – यह पर्यायवाची नाम श्री गौतम स्वामी जी के ही है, सब लोग इस बात को न समझ का गणेश, लक्ष्मी की पूजा करने लगे है वास्तव में गणधर देव, केवलज्ञान महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये
दीपक केवलज्ञान रूपी ज्योति का प्रतिक है, हमको अन्धकार रूपी मोह का नाश करना है केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए, हमें भगवान महावीर स्वामी – मोक्ष लक्ष्मी तथा गौतम स्वामी – गणों में ईश की पूजा करनी चाहिए, जो हम लोकिक गणेश व लक्ष्मी की पूजा करते है वो जैन धर्म में नहीं है, इस बारे में हम शास्त्रों तथा ग्रंथो में पढ़ सकते है तथा मुनि भगवन्तो से इस बारे में पूछना चाहिए, अन्यथा यहाँ गृहीत मिथ्यात्व कर्मो का बंध होता है
फटाके जलाना जिनेद्र देव की वाणी का अपमान है ! क्योकि
“अहिंसा परमो धर्म”
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