लब्धिनिधान, भगवान महावीर स्वामी के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी जी
- पूर्व भव में मरीचि त्रिदंडी के कपिल नाम दे शिष्य थे।
- पूर्वभव में त्रिपृष्ठ वासुदेव के सारथि बनकर सेवा की थी।
- गौतमस्वामी को अभिमान के बदले संयम व विलाप के बदले केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
- महानज्ञानी होते हुए भी ‘जीव है या नहीं ?’ मन में ऐसी शंका थी।
- इंद्रभूति पंडित से वैशाख सुदी ११ को गौतमस्वामी बने।
- त्रिपदी द्वारा भगवान की कृपा से द्वादशांगी की रचना करने में समर्थ हुए।
- वाणिज्य ग्राम में आनंदश्रावक को मिच्छामी दुक्कडम देने गए।
- मृग गाँव में मृगावती रानी के यहाँ मृगा लोढ़िया को देखने (मिलने ) गए।
- भगवान महावीर को ३६ हजार प्रश्न पूछे जो भगवती सूत्र में हैं।
- हालिक (खेडूत) को प्रतिबोध करने प्रभु वीर ने गौतम स्वामी को भेजा।
- केशी गणधर के साथ गौतम स्वामी का तिंदुक गाँव में मिलन हुआ।
- पोलासपुर में अइमुत्ता की विनती से उनके घर गोचरी गए।
- अक्षीणमहानस लब्धि से १५०३ तापस को खीर से पारणा कराया।
- 50 हजार शिष्य का परिवार था।
- गौतम स्वामी ने जिनको भी दीक्षा दी वे सभी केवलज्ञानी हुए।
- प्रभु वीर की आज्ञा से देवशर्मा को प्रतिबोध करने गए।
- विलाप करते कार्तिक सूद 1 को अपापापुरी में केवलज्ञानी बने।
- सात हाथ की काया, सुवर्ण देह, निर्वाण राजगृही में हुआ।
- अनंत लब्धि निधान छठ के पारणा छठ करने वाले महान तपस्वी थे।
- अष्टापदजी तीर्थ की स्वलब्धि से यात्रा की वहां जगचिंतामणि सूत्र की रचना की।