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हे अनंतशक्ति के पुंजस्वरूप तारक परमात्मा !

Prashant Chourdia by Prashant Chourdia
February 19, 2022
in जैन सुविचार
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भवसागर को जिन्होंने पार कर दिया है और जो सभी प्रकार के अतिशयों से युक्त है, ऐसे जिनेश्चर परमात्मा विवेकी पुरुषों के लिए सदैव स्तवनीय है ।

तारक अरिहंत परमात्मा का अपनी आत्मा पर अनंत उपकार है । उसकी चाहे जितनी भक्ति करे तो भी हम उनके उपकार के ऋण में से मुक्त नहीं बन सकते है ।

तारक परमात्मा के गुणों के स्तवना करने से अपनी आत्मा में रहा मोह का अंधकार दूर होता है और अपनी आत्मा में गुणों का प्रादुर्भाव होता है ।

अनेक स्तुति-स्तवनों के माध्यम से हम प्रभु की गद्य या पद्यमय स्तवना कर सकते है  ।

हे अनंतशक्ति के पुंजस्वरूप तारक परमात्मा !

आप अनंत गुणों के स्वामी हो । अल्पमति और अल्पशक्तिवाला मैं आपके समस्त गुणों का वर्णन करने में असमर्थ ही हूँ । पूर्वधर महर्षि भी आपके समस्त गुणों का वर्णन करने में असमर्थ हैं तो मेरी तो क्या ताकत है !

हे करुणानिधान प्रभु ! आप शरणागत-वत्सल तो हो ही, इसके साथ ही आपकी शरण में जाने वाले को आप आत्मतुल्य बना देते हो । जल की जो बूंद पवन के एक झांके मात्र से ही नष्ट हो जाती है.. यही जलबिदु जब सागर को अपना जीवन समर्पित कर देती है, तब अक्षय बन जाती है । बस, इसी प्रकार जो आत्मा प्रभु के चरणों में पूर्ण समर्पित हो जाती है, परमात्मा उसे पूर्ण और अक्षय बना देते हैं।

आज तक मेरी आत्मा इस भीषण संसार में भटकती रही है इसका एक मात्र कारण यही कि मैंने परमात्मा के चरणों में अपना सर्व समर्पण नहीं किया ।

हे जगत्वत्सल !

आप अपने शरणागत को आत्मतुल्य बनाना चाहते हो.. परसु अभी तक मेरी आत्मा का उद्धार नहीं हुआ इसका एक मात्र कारण मेरे समपंण भाव में कमी ही है ।

काया से मैंने आपकी पूजा-अर्चना की । सुंदर मोतियों के हार से आपको सजाया। सुंदर पुष्पों से आपकी अंगरचना की । अनेक बार आपकी सेवा-शुश्रुषा की-इतना ही नहीं, मधुर कोकिल-कंठी राग से आपका गुणगान भी किया। इस रसना से मैंने आपके गुणों का रसपान भी किया… परंतु मन के समर्पण के अभाव में मुझे जो फल मिलना चाहिए था, वह फल नहीं मिल पाया ।

मैंने कोल्हू के बैल की तरह श्रम बहुत किया परन्तु उसका कोई परिणाम नहीं आया ।

तन आपके प्रति समर्पित था परंतु मन तो संसार के विषय-सुखों को ही समर्पित था और उसी परिणामस्वरूप मेरी सारी साधना निष्फल ही रही ।

सूर्यविकासी कमल, सूर्य के अस्तित्व में तो खिलता ही है, परन्तु उस सूर्यं के दूर रहने पर भी… सूर्यकिरणों की प्रभा को प्राप्त करके भी पद्म सरोवर में रहे हुए ये कमल खिल उठते हैं ।

बस, इसी प्रकार हे प्रभो !

आपके गुणगान स्वरूप स्तवन में तो समस्त पापों को नष्ट करने की ताकत रही हुई है ही, परन्तु हदय के समर्पण पूर्वक लिये गए आपके नाम से भी समस्त दोषों, पापों को नष्ट करने की शक्ति रही हुई है।

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