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तप करने के लिए वर्ष का सबसे बड़ा दिन – मौन एकादशी

Pratik Chourdia by Pratik Chourdia
February 19, 2022
in जैन जानकारी
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मगसर सुद एकादशी को मौन एकादशी का पर्व आता है. इस दिन तीनो 24 के तीर्थंकरों के 150 कल्याणक हुये है. इस दिन उपवास करनेवालों को 150 उपवास का फल मिलता है. इस तिथी की आराधना सुव्रत सेठ ने की थी. उनकी कथा यहा जानेंगे.

एक बार नेमिनाथ भगवान द्वारिका नगरी पधारे. उन्होने वैराग्ययुक्त देशना दी. श्री कृष्ण वासुदेव ने प्रभु को वंदनकर पुछा – “वर्ष के 360 दिन मे किस दिन थोडा तप करने पर भी अधिक फल मिलता है?”
श्री नेमिनाथ प्रभु ने कहा – “मौन एकादशी का दिन सर्व पर्व मे उत्तम है ”

इस भरत क्षेत्र के वर्तमान 24 मे

  • अरनाथजी की दिक्षा
  • मल्लीनाथजी का जन्म दीक्षा के़वलज्ञान
  • नमिनाथजी को केवलज्ञान
  • ये 5 कल्याणक हुये.

इसी तरह 5 भरत और 5 ऐरावत इन 10 क्षेत्रोमे भी 5-5 कल्याणक होनेसे कुल 50 कल्याणक हुये. गत चौबीसीमे 50 कल्याणक हुये है और अनागत चौबीसी मे 50 कल्याणक होंगे. इस प्रकार इस दिन कुल 150 कल्याणक हुये है.

11 वर्ष मे पुर्ण होता है यह तप

इस दिन मुख्य रूप से मौन धारण करना होने से इसे मौन एकादशी कहते है. नेमिनाथजी से इस दिन की महिमा सुनकर श्री कृष्ण ने पुछा की इस तप की पूर्व काल मे किसने आराधना की है और उसे क्या फल मिला?
तब नेमिनाथ भगवान सुव्रत सेठ की कथा कहते है!

धातकी खण्ड के दक्षिण भरतार्ध मे विजयपुर नगरमे नरवर्मा राजा और चन्द्रावती रानी थी. उस नगर मे सूर नामके सेठ रहते थे. वो बडे धनवान और देवगुरू के परम भक्त थे.

सेठ ने एक बार गुरू से पुछा- मै रोज धर्म नही कर सकता तो मुझे एक ऐसा दिन बताइये जिस दिन धर्म करने से ज्यादा फल मिले.
तब गुरूदेव ने मौन एकादशी की महिमा कही और उस दिन चौविहार उपवास , 8 प्रहर का पौषध आदि विधी बताई.

सेठ ने विधीपूर्वक तप की आराधना कर आयुष्य पूर्ण होने पर आरण नामके 11 वे देवलोक मे देव हुये.

देवलोक मे आयुष्य पूर्ण होने पर वहा से च्यवकर जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमे सौरीपुर नगरमे समुद्रदत्त सेठ की प्रीतीमती स्त्री की कुक्षी से पुत्ररूपमे उत्पन्न हुये. गर्भ के प्रभाव से माताको व्रत पालन की इच्छा होनेसे बालकका नाम सुव्रत रखा गया. जन्म के समय नाल गाडने की जगह अपार धन प्राप्त हुआ इसलिये पुत्र का बडा जन्मोत्सव मनाया गया.

5 धाय माताओंने प्रेम से पाला पोसा. 8 साल की उम्र मे उसे पाठशाला मे भेजा गया वहा उसने सारी कलाये सिखी. युवान हुये तब 11 कन्याओंके साथ उनका विवाह हुआ.

समुद्रदत्त सेठने पुत्र को घरकी जिम्मेदारी सौप दी और खुद सामायीक प्रतिक्रमणादी धर्मकार्यमे प्रवृत्त हुये और अनशन पूर्वक देहत्याग कर देवलोक मे देव हुये.
पूर्व भव मे मौन एकादशी की उत्तम आराधना के प्रभावसे सुव्रत सेठ को 11 पत्नीयोंके साथ 11 करोड सोनैया और 11 पुत्र प्राप्त हुये.

एक बार उस नगर के उद्यान मे मनःपर्यवज्ञानी शीलसुंदर सूरीजी पधारे. राजा और सेठ भी सपरीवार वंदनके लिये गये. आचार्यजीने धर्मोपदेश दिया जिसमे मौन एकादशीका माहात्म्य सुनाया जिसे सुनके सुव्रत सेठ को जातीस्मरण ज्ञान हुआ.
तब दो हाथ जोडकर गुरू से कहा — मेरे अंगीकार करने योग्य धर्म मुझे बताइये.
तब गुरू ने भी सभा समक्ष सुव्रत सेठ का पूर्व भव वर्णित कर कहा– तुमने पूर्व भव मे मौन एकादशी का तप किया था इससे इस भव मे ऐसी ऋध्दि प्राप्त की है और अब भी वही तप कीजीये जिससे मोक्ष सुख भी प्राप्त होगा. सेठ ने भी भावपूर्वक कुटुंबसहीत मौन एकादशी व्रत ग्रहण किया.

मौन एकादशी के दिन उपवासमे सेठ मौन रहते है यह जानकर चोरो ने सेठ की हवेली मे प्रवेश किया. चोरों को देखकर भी सेठ मौन रहे और धर्मध्यान मे निश्चल रहे. चोर धन लेकर चलने लगे पर शासनदेवी ने चोरों को स्तंभित कर दिया.
सुबह जब राजा को पता चला तो उन्होने चोरों को पकडने के लिये सिपाही भेजे. राजा के सिपाही चोरों को ना मारे ऐसा दयाभाव सेठ के दिलमे होनेसे सेठके तप के प्रभावसे सिपाही भी स्तंभीत हो गये. तब राजा भी वहा आये.
सेठ की दयाभाव की इच्छा जानकर शासनदेवी ने चोर और सिपाहीओंको मुक्त किया.

एक बार मौन एकादशी के दिन नगर मे आग लग गई लोगो ने सेठ को घर से बहार निकलने को कहा पर सेठ तो कुटुंबसहित पौषध ग्रहण कर धर्मध्यान कर रहे थे .
सेठ के धर्म के प्रभाव से उनका घर , दुकान, हवेली, गोदाम, पौषधशाला आदि बच गये. इसके सिवाय सारा नगर जल गया.
सेठकी सारी संपत्ती सुरक्षित देख राजा मंत्री सब लोग आश्चर्यचकित हुये और जैनधर्मकी प्रशंसा करने लगे. सेठ ने भी तप पूर्ण होने पर महोत्सवपूर्वक उद्यापन किया.

सेठ ने सोचा अब मुझे गुरूके पास चारित्र ग्रहण कर जन्म सफल करना चाहीये. पुण्ययोग से मनःपर्यवज्ञानी आचार्य गुणसुंदर सुरी वहा पधारे ज्येष्ठ पुत्र को घर सौपकर सेठ और उनकी 11 स्त्रीयोंने दीक्षा ग्रहण की.

एक बार मौन एकादशी के दिन सुव्रत साधु कार्योत्सर्ग ध्यान मे लीन थे तब एक मिथ्यात्वी देव ने उनकी परीक्षा लेने की इच्छा से एक अन्य साधु के शरीरमे प्रवेशकर सुव्रत मुनि के सिर पर रजोहरणसे प्रहार किया. क्रोध न करते हुये सुव्रत सेठ आत्ममंथन करने लगे. शुक्लध्यान मे आरूढ होकर घाती कर्मोंका क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया.

सुव्रत केवली अनेक जीवोंको प्रतिबोधकर कइ वर्षोंतक केवल़ी पर्यायका पालन कर अनशन ग्रहणकर मोक्षमे पधारे.

मौन एकादशी देववंदन की रचना पं. रूपविजयजी ने की है. इनका दीक्षा पर्याय 50 वर्ष का है.

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