चातुर्मास के आगमन के साथ ही जिनालय, देरासर या कहे तो मंदिर जी में श्रावक श्राविकाओ का आगमन और उत्साह बढ़ने लगता है | चाहे प्रभुजी की अंग पूजा हो या अग्र पूजा, स्नात्र पूजा हो या भाव पूजा सभी अपने अपने अनुरूप अपने कर्मो का क्षय करने का प्रयास करते है, इसी प्रयास को और अनूठा बनाते हुए आज हम आपको जिन पूजा के समय पहने जाने वाले वस्त्रो से सम्बंधित जानकारी दे रहे है, उम्मीद करते हैं आप सभी यथा संभव इन निम्न बातो का ध्यान रखेंगे :
पूजा के वस्त्र सम्बंधित आवश्यक जानकारियां
- पुरुष खेश इस रीति के पहनें जिससे दाहिना कंधा खुला रहे |
- धोती और खेश के अतिरिक्त अधिक कपड़ो का उपयोग न करे | स्त्रिया तीन कपड़ो का उपयोग करें |
- पुरुष मुखाग्र बांधने के लिए रुमाल का उपयोग न करे | खेश से ही नासिका सहित मुखकोश बांधे |
- स्त्रियाँ रुमाल से ही मुखाग्र को बांधे | रुमाल, स्कार्फ जितना मोटा और चोकस होना चाहिए |
- पूजा के वस्त्रों का उपयोग पसीना पोंछने या नाक पोंछने जेसे कार्यों में न करें |
- पूजा के वस्त्रों को स्वच्छ रखें |
- अन्य प्रसंगों में पूजा के वस्त्रों को नहीं पहने | सामायिक में पूजा के वस्त्रों का प्रयोग अयोग्य है |
- पूजा के वस्त्र पहनकर कुछ खा-पी नहीं सकते, यदि भूल से भी कुछ खाया-पिया हो तो फिर उस वस्त्रों का पूजा के लिए उपयोग न करें |
- घर में स्कूटर या वाहनों पार बैठकर, चप्पल या जूते पहनकर मंदिर में पूजा करने नहीं जाना चाहिये |
- पूजा के वस्त्र उत्तम किस्म (रेशमी वगेरह) के हो | रेशमी कपडें गंदगी को जल्दी नहीं पकड़ते | साथ की भाव वर्धन होने से पूजा के लिए उत्तम गिने है | इसी हेतु अंजनशलाका के समय आचार्य भगवंत के लिए भी रेशमी की वस्त्र परिधान का विधान है |
- घर-गाड़ी-तिजोरी वगेरह की चाबियों को साथ में रखकर पूजा नहीं करनी चाहिए | पूजा करते समय घडी नहीं पहननी चाहिये |
- पूजा के वस्त्रों में कोई छिद्र अथवा फटे नहीं होने चाहिए |
प्रभुजी की केसर/चन्दन और कोई भी अंग पूजा करते समय कपड़ो के साथ साथ तन एवं विचार शुद्धि भी होना अति आवश्यक है | आशा है आपको उपरोक्त जानकरी लाभप्रद लगी होगी और आप इसे अन्य श्रावक श्राविकाओं को भी शेयर करेंगे, आपके विचारों का स्वागत है