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जैन साधूभगवंत के पांच महाव्रत

Prashant Chourdia by Prashant Chourdia
February 19, 2022
in जैन जानकारी
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प्राणातिपातविरमाण महाव्रत – अहिंसा
मृषावादविरमाण महाव्रत – सत्य
अदत्तादानविरमाण महाव्रत – अचौर्य
मैथुनविरमाण महाव्रत – ब्रह्मचर्य
परिग्रहविरमाण महाव्रत – अपरिग्रह

 

दीक्षा लेनेवाला व्यक्ति प्रतिज्ञापूर्वक कहता है की – “है अरिहंत भगवंत ! मैं मन-वचन-काया से हिंसा असत्य, चोरी, भोपविलास एवं परिग्रह का सेवन न तो खुद करुंगा.. न और किसी से करवाऊंगा… यदि कोई करता होगा तो में उसका समर्थन भी नहीं करूंगा। है प्रभो, इन पाँचो महावतों का जीवनपर्यन्त पालन करने की में प्रतिज्ञा करता हूँ।”

जैन साधू-साध्वी कभी किसी भी जीव क्री हिंसा नहीं करत्ते। छोटे से छोटे जंतु को भी पीडा नहीं देने की प्रतिज्ञा के साथ है जीवन जीते हें।

कैसी भी परिस्थितियाँ आ घेरे… वे कभी झूठ नहीं बोलते। हँसते-हँसने… या डर से… लालच से… या गुस्से में आकर… अथवा छल-कपट करके भी कभी झूठ का सहारा नहीं लेते।

मालिक की इजाजत लिये बगेर वे छोटी से तिनके जैसी चीज भी नहीं लेते।

उन्हें पूर्णतया ब्रह्मचर्यं का पालन करना होता है इस बारे में उनके नियम काफी कड़क एवं एकदम सतर्कताभरे होते है। साधुओं के लिये रत्री, फिर वह किसी भी उम्र की हो, एवं साथ्वी के लिये पुरुष, चाहे किसी भी उम्र का हो उनके लिये विजातीय स्पर्श बड़ी सख्ती से निषिद्ध है। गलती से भी, अनजाने में भी छू ले तो इसके लिये उन्हें प्रायश्चित लेना होता है।

छोटी बच्ची या छोटे बच्चे को भी स्पर्श नही करने के नियम के पीछे वृत्ति को तनिक भी छूट नही देने का हेतु है। चूंकि उम्र की कोई मर्यादा तो स्पर्श के लिये तय हो नहीं सकती! और फिर यह पता भी को लगे कि किसकी कितनी उम्र है? इसलिये पूर्णरुपेण स्पर्श निषेध किया है। इस नियम का चुस्ती से पालन करने के लिये और भी कई सावधानियां बरतने की होती हैं। इस सबके पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक असर का स्थान है। मन को यदि एक बार जरासी छूट दी गई तो वह कदम ब कदम नीचे उतरता ही जायेगा।

जैन साधु अपने पास पैसा नहीं रख सकते। अपनी सम्पति मकान या ऐसी कोई भी चल-अचल संपदा वे नहीं रखते। जीवन की आवश्यकतायों को अत्यंत सीमित रखते हुए इसके अलावा तमाम पदार्थों को परिग्रह मानकर वे ग्रहण नहीं करते! इन पाँच महावतों के अलावा उन्हें और भी कई नियमों का पालन करना होता है! जिसकी जानकारी अगले पोस्ट में दी जाएगी।

विशेष: जैन साधू सूर्यास्त के बाद न तो भोजन लेने है न ही पानी पीते है। सूर्योदय होने के बाद 48 मिनिट गुजरने के पश्चात ही वे मुहं में पानी डालते है रात को तो वे कभी खाना-पीना नहीं लेते।

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