पर्वाधिराज पर्युषण का आगमन याने प्रत्येक जेनों के मन मंदिर में आनंद की अनुभूति । छोटे – बड़े – ब्रद्ध युवक – महिलाएं – बालिकाएं सब बड़े उत्साह के पर्व के आगमन का इंतजार करते है किन्तु आत्मा विशुद्धि का यह पर्व सिर्फ धमाल का पर्व रह गया है । बड़े शहरों में तो इतना शोर – धमाल पुरे दिन चलता है की राग – देवश की बढोतरी का पर्व हो जाता है । पूजा में आगे बढ़ने की स्पर्धा, मंडलों की वाजिंत्रो की आवाज सह स्पर्धाएं कान फोड़ देती है । पारणे की धमाल तपश्या का गोरव ख़त्म कर देती है । पाठशाला में अभ्यासको के साथ प्रशान्तता से की जाने वाली क्रियाओं से अनुभूति हुई की पर्व के दिनों में बाल मानस को आराधना द्वारा निरंतर व्यस्त रखना चाहिए ताकि उनके दिमाग में दूसरी सांसारिक चिंतन ही न चले । इसी लिए हमारे द्वारा प्रत्येक दिन पर्युषण संभंधि सभी प्रश्नों के उत्तरों के साथ साथ चेत्यवंदन, स्तवन, स्तुति आदि पर लेख लिखे जायेगे । साथ ही सूत्र शिरोमणि कल्पसूत्र के व्याख्यान संभंधि प्रश्नों के उत्तर भी दिए जायेगे ।
स्नात्र पूजा तो करीबन प्रत्येक पठाशालाओ में एवं मंदिरों में पढाई जाती है, किन्तु जितना आनदं आना चाहिए नहीं आता है । इसका कारण एक ही है की आवश्यक जानकारी नहीं है । स्नात्र सम्भाधि अधिक जानकारी के लिए स्नात्र की बिधि लेख पढ़े ।
इस पर्युषण महापर्व पर आप सभी हमारे माध्यम से आराधना में जुटेगे एवं आनदं पायेगें तो मेरा प्रयत्न सार्थक होगा ।