जैन धर्म अनेको महान व्यक्तित्वों से भरा पड़ा है, संसार को जीव दया और अहिंसा का जो पथ जैन धर्म ने दिखाया वह सभी के लिए आदर्श है | जैन धर्म के ऐसे ही एक रत्न जीवदया प्रतिपालक महाराज कुमारपाल के जीवन शैली के कुछ अंश :
जीवदया प्रतिपालाक कुमारपाल महाराज
जन्म – वि.सं. 1149 दधिस्थली , वंश- चालुक्य , राज्य प्राप्त – वि.सं. 1199, 12 व्रत लिए- वि.सं. 1216, स्वर्गवास – वि.सं. 1230, राज्य भोग-30 वर्ष ऊपर
ऐसी थी महाराज कुमारपाल की दिनचर्या
परमार्थ महाराज कुमारपाल १८ देशों के राज्य का भार, सांसारिक तथा व्यहवारिक कार्यों मे व्यस्त रहते हुए भी अपनी दिनचर्या निश्चित की थी |
- सूर्योदय से पहले सुबह ४ बजे नमस्कार महामंत्र का मंत्रोच्चार करते हुए वे उठते थे |
- उसके बाद सामयिक, प्रतिक्रमण करने के बाद श्री योग शास्त्र और वीतराग स्त्रोत का पाठ करते थे |
- उचित काया शुद्धि करके गृह चेत्य में प्रात पूजा (वासक्षेप पूजा) करते थे तत्पश्चात यथा शक्ति पच्छखाण करते थे |
- काया आदि की सर्व शुद्धि करके वे त्रिभुवनपाल विहार में जाकर ७२ सामंतों एवं १८०० कोटियाधिपतियो के साथ अष्टप्रकारी जिन पूजा करते थे |
- प्रतिदिन गुरु पूजा, गुरु वंदन करके पच्छखाण करते एवं प्रतिदिन जिनवाणी श्रवण करते थे |
- अपने स्थान मे आकर लोगों की अरज या फरियादें सुनते थे |
- दोपहर में नैवध्यों की थालीयाँ चैत्यो में चड़ाते थे |
- साधार्मिक बंधुओं की भक्ति, अतिथि संविभाव, अनुकंपा दान देकर ही भोजन करते थे |
- सभा में विधवानों के साथ शास्त्रार्थ, धर्म चर्चा करते थे |
- राज सिंहासन पर विराजमान होकर सामंत, मंत्री, श्रेष्ठीयों को मार्गदर्शन करते थे |
- अष्टमी, चतुर्दशी का पौषध, उपवास और प्रतिदिन रात्रिभोजन का त्याग करते थे |
- शाम को गृह चैत्य की पूजा, आरती, मंगल दीप के बाद प्रतिक्रमण करते थे |
- उपाश्रय में जाकर गुरुमहाराज के साथ प्रतिक्रमण, सामयिक, धर्म चर्चा, शंका समाधान करते थे |
- स्थूलीभद्रादी महापुरुषों का स्मरण, अनित्यादि भावना, विश्वमैित्री, विश्वकल्याण भावना, चार शरण स्वीकार करके नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हुए निद्राधीन बनकर रात गुज़ारते थे |
कुमारपाल राजा की पालनी
- वर्षा ऋतु में जीवों की उत्पति होने के कारण पाटण से बाहर नहीं जाते थे।
- चातुर्मास में प्रतिदिन एकासना करते मात्र आठ द्रव्य ही वापरते थे।
- हर रोज 7 लाख घोड़े, 11 हजार हाथी व 80 हजार गायों को पानी छानकर पिलाते थे।
- जब भी घोड़े पर बैठते तब पूंजनी से साफ़(पूंज) कर बैठते थे।
परिग्रह का परिमाण करने के बाद छूट-
- 11 लाख घोड़े, 11 हजार हाथी, 50 हजार रथ, 80 हजार गायें, 32 हजार मण तेल घी, सोने चांदी के 4 करोड़ सिक्के, 1 हजार तोला मणि-रत्न, घर दुकान जहाज आदि 500 रखने का व्रत लिया था।
- कुमारपाल राजा ने हेमचंद्राचार्य के उपदेश से समूचे पाटण में कत्लखाने बंद करवा दिए, इनके मुख से मारो ऐसा शब्द भी निकल जाता तो उस दिन आयम्बिल अथवा उपवास करते थे।
- एक सेठ ने जूं मार दी इसके दंड स्वरूप यूको विहार नामक जिनालय बनवाया था।
- प्रतिदिन 32 जिनालयों के दर्शन करके भोजन करते थे।
- शत्रुंजय के 7 संघ निकाले जिसमे प्रथम संघ में 9 लाख के 9 रत्नों से पूजा की।(पूजा के बाद 98 लाख धन दान दिया)
- कुमारपाल राजा ने मछीमारों की 1,80,000 जालों को जलाकर उनको अच्छा रोजगार दिया।
- हर रोज योग शास्त्र व वीतराग स्तोत्र का पाठ करने के बाद ही मंजन करते थे।
- अठारह देश में जीवदया का अद्वितीय पालन करवाया।
- सात बड़े ज्ञान मंदिर व 1440 मंदिर बनवाये।
- कुमारपाल राजा ने तारंगा में अद्वितीय जिन मंदिर बनाया।
- चातुर्मास में मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। मन से भी कभी ब्रह्मचर्य का भंग होता तो दूसरे दिन उपवास करते थे।
ऐसा था जीवदया प्रतिपालक महाराज कुमारपाल का जीवन, अपने जीवन में धर्म पथ पर चलते हुए कुमारपाल महाराज ने अनंत पुण्य का बंध किया और आगामी चौविसी के प्रथम तीर्थंकर भगवान पद्मनाभ स्वामी के आप प्रथम गणधर बन मोक्ष को प्राप्त करेंगे !
धन्य धन्य जिनशासन, धन्य हो जीवदया प्रतिपालक |