वीतराग भगवान का दर्शन पापो का नाश करता हैं। वीतराग प्रभु को वंदन वांछित को पुरता हैं। वीतराग प्रभु की पूजा लक्ष्मी को अर्पण करती हैं। परमात्मा साक्षात् कल्पवृक्ष हैं । प्रभु दर्शन की इच्छा हुई तभी से ही लाभ शुरू हो जाता हैं। 1 उपवास, छट्ट, अट्टम, 15 उपवास, 30 उपवास आदि लाभ मिलते हैं। किसी पर कषाय क्लेश हुआ होतो दिमाग को शांत करके दर्शन करने जाना चाहिए। मंदिर जाते समय दूध का बर्तन और शाक सब्जी की थेली लेकर नही जाना चाहिए। जो स्वर चलता हो वही पैर घर के बाहर रखकर दर्शन करने के लिए जाना चाहिए। शुभ शकुन देखकर प्रभु को मिलने के लिए जाना चाहिए। नंगे पैर दर्शन करने जाने से तीर्थ यात्रा का लाभ मिलता हैं, जयणा का पालन होता हैं। मंदिर की ध्वजा देखते ही दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर ‘नमो जिनाणं‘ बोलना।
मंदिर जाये तब जेब में खाने पिने की चीजो को न रखे। झूठा मुहं हो तो पानी से साफ़ करना। दर्शन के लिए स्नान करना जरुरी नही हैं (हाथ मुँह धोकर अंग शुद्धी कर ले तो चलता हैं)
भगवान की आज्ञा मस्तक चढाने के प्रतिक के रूप में मस्तक पर तिलक करना चाहिए (पुरुषो को बदाम-ज्योत का आकर और महिलाओ को गोल तिलक करना चाहिए)। अजयपाल के क्रूर हठाग्रह से उन्नीस युगल गरमागरम तेल में तल कर खत्म हो गये, थे लेकिन तिलक नही मिटाया। उस बलिदान को याद करके तमाम माता बहिनों को सुचना हैं कि सुबह में बच्चो को टूथ-ब्रश पूछते हो लेकिन यह पूछना क्यों भूल जाते हो, “बेटा ! तिलक क्यों नही लगाया? जा जल्दी लगा के आ। तिलक बिना जैन का बच्चा शोभता नही।” तिलक पुरे दिन रहे इस तरह से लगाना। शेठ- मालिक को वफादार रहने वाला आदमी, क्या तिलक को बेवफा बनेगा? मेरे मस्तक पर प्रभु का तिलक हैं, यह याद आते ही बहुत से पापों से बच जाओगे।
प्रभु को तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। तीन प्रदक्षिणा देने से 100 वर्ष के उपवास का लाभ मिलता हैं। यानि 36,500 उपवास का लाभ मिलता हैं। प्रदक्षिणा ज्योतिष शास्त्र की द्रष्टि से भी महामांगलिक हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रयाण करने से पहले तीन प्रदिक्ष्णा देने से तमाम दोष दूर हो जाते हैं।
मंदिर के मुख्य द्वार पर निसिहि कहकर प्रवेश करना। पुरुषो को अपने बाय हाथ की ओर से महिलाओ को अपने दाये हाथ की ओर से अंदर प्रवेश करना चाहिए।
मुख्यद्वार के निचे शील के अनुसार द्रष्टि दोष निवारण के लिए दो जलग्राह बनाये हुए हैं। उन दोनों के बीच की जगह हाथ स्पर्श करना भगवान के दर्शन होते ही “नमो जिणाणं” बोलना।