जैन धर्मं में मनुष्य जीवन को पाप पुण्य के अनुसार फल मिलते है ऐसा बताया गया है, अगर पुण्य अर्जित की तो उसके उदय से सुख और पाप किया तो उसके उदय से दुःख ही मिलता है। शास्त्रों में पुण्य ही पुण्य कमाने के कुछ सरल तरीके बताये है।
- 5500 सौनेया खर्चकर जीवभिगम, पन्नवणा, भगवती सूत्र आदि लिखने से जितना पुण्य होता है उतना पुण्य किसी को मुह्पत्ति देने से होता है।
- 5500 गर्भवती गायों को अभयदान देने से जो पुण्य होता है, यह एक मुह्पत्ति देने वाले को होता है।
- 25000 शिखर युक्त जिनालयों के निर्माण करवाने से जितना पुण्य होता है, उतना पुण्य एक चरवाला देने से होता है।
- मासक्षमण की तपस्या अथवा जीवदय हेतु 1 करोड़ पिंजरे निर्माण करने के सामान पुण्य एक आसन (बैठका) देने से होता है।
- 84000 दानशालाओं को बंधवाने से जितना पुण्य होता है उतना पुण्य गुरु को द्वादशावर्त वंदन करने से होता है।
- पांच सो धनुष प्रमाण वाली 28000 प्रतिमा भरवाने से जो पुण्य होता है उतना पुण्य एक इर्यावाहिया करने से मिलता है।
- 10000 गायों का एक गोकुल कहलाता हे, ऐसे 10000 गोकुलों के गायों को दान में देने से जो पुण्य मिलता है उतना पुण्य प्रतिक्रमण का उपदेश देने से मिलता हैं। (प्रबोध टीका)
- मणिजडित स्वर्ण की सीढी युक्त, 1000 स्तम्भ युक्त ऊँचा, स्वर्ण के तल वाला श्री जिनमंदिर का निर्माण करवाने से जितना पुण्य होता है उतना पुण्य तप सहित एक पौषध करने से मिलता है।
- कोई व्यक्ति 20 लाख करोड़ सोने का दान करे, उससे भी अधिक फल एक सामायिक करने से मिलता हे
- दिवाली का छठ करने से एक लाख करोड़ उपवास का फल मिलता है।
- मौन एकादशी का उपवास करने से 150 उपवास का फल मिलता है।
- थाली धोकर पीने एवं मंदिर का कचरा निकालने से आयम्बिल का लाभ मिलता है।
- एक करोड़ सोना मुहर दान करने से या 7 मंजिल का सोने का मंदिर बनवाने से भी अधिक लाभ एक दिन का ब्रह्मचर्य पालन से मिलता है।
- जिनमन्दिर की ध्वजा चडाने वाले की 101 पीढ़ी नरक में नहीं जाती है।