ऋषभकुमार का राज्याभिषेक – एक दिन सभी युगलिए एकत्रित होकर हाथ ऊँचे करके नाभिकुलकर से पुकार करने लगे- “अन्याय हुआ, अन्याय हुआ।“ अब तो अकार्य करने वाले लोग हकार, मकार और धिक्कार नाम की सुंदर नीतियों की भी नहीं मानते।“ यह सुनकर नाभिकुलकर ने युगलियों है कहा- “इस अकार्य से तुंम्हारी रक्षा ऋषभ करेगा। अत: अब उसकी आज्ञानुसार चलो।“ उस समय नाभिकुलकर की आज्ञा से राज्य की स्थिति प्रशस्त करने हेतु तीन ज्ञानधारी प्रभु ने उन्हें शिक्षा दी कि “मर्यादाभंग करने वाले अपराधी को अगर कोई रोक सकता है, तो राजा ही। अत: उसे ऊँचे आसन पर बिठाकर उसका जल से अभिषेक करना चाहिए।“ प्रभु की बात सुनकर उनके कहने के अनुसार सभी युगलिए पत्तों के दोनें बनाकर उसमें जल लेने के लिए जलाशय में गये। उस समय इंद्र का आसन चलायमान हुआ। उससे अवधिज्ञान से जाना कि भगवान के राज्याभिषेक का समय हो गया है। अत: इंद्रमहाराज वहां आये। उसने प्रभु को रत्नजटित सिंहासन पर बिठाकर राज्याभिषेक किया। मुकुट आदि आभूषणों से उन्हें सुसज्जित किया। इधर हाथ जोड़कर और कमलपत्र के दोनों में अपने मन के समान स्वच्छ जल लेकर युगलिए भी पहुंचे। उस समय अभिषित्त एवं वस्त्राभूषणों से सुसज्जित मुकुट सिर पर धारण किये हुए सिंहासनासीन प्रभु ऐसे प्रतीत हो रहे थे। मानो उदयाचल पर्वत पर सूर्यं विराजमान हो। शुभ्र वस्त्रों से वे आकाश में शरदऋतु के मेघ के से सुशोभित हो रहे थे। प्रभु के दोनों और शरद्ऋतु के नवनीत एवं हंस के समानं मनोहर उज्जल चामर ढुल रहे थे।
विनीता नगरी का निर्माण- अभिषेक किये हुए प्रभु को देखकर युगलिये आश्चर्य में पड़ गये। उन विनीत युगलियों ने यह सोचकर कि ऐसे अलंकृत भगवान् के मस्तक पर जल डालना योग्य नहीं है अत: प्रभु के चरणकमलों पर जल डाल दिया। यह देखकर इंद्रमहाराज ने खुश होकर नौ योजन चौडी बारह योजन लंबी विनीता नगरी बनाने की कुबेरदेव को आज्ञा दी। इंद्र वहाँ है अपने स्थान पर लोट आये। उधर कुबेर ने भी माणिक्य- मुकुट के समान रत्नमय और धरती पर अजेय विनीता नगरी बसायी, जो बाद में अयोध्या नाम है प्रसिद्ध हुई।