शत्रुंजय गिरिराज की महिमा मेरु समान है। हे भव्यजीवो इसे श्री शत्रुंजय महातीर्थ के जितने गुणगान किये जाएँ वे कम है। चोदह राजलोक मे ऐसा एक भी तीर्थ नहीं है जिसकी तुलना शत्रुंजय तीर्थ से कर सके। वर्तमान मे भरतक्षेत्र मे तिर्थंकर परमात्म नहीं है, केवलज्ञानी भगवंत भी नहीं है, ना ही कोई विशिष्ट ज्ञानी है, फिर भी महाविदेह क्षेत्र की पुण्यशाली आत्मा भी भरत क्षेत्र के मानव को परम सोभाग्यशाली मानते है, क्यों की उसका एक मात्र कारण इस शाक्ष्वत तीर्थ का भरत क्षेत्र मे होना है। हम कितने भाग्यशाली है की हमे यह शाश्वत तीर्थ मिला है। हमे इस तीर्थ की बारम्बार यात्रा करनी चाहिए।शाश्वत तीर्थ शत्रुंजय गिरिराज पालीताणा की महिमा जानने के लिए क्लिक करे।
नव्वाणुं प्रकार कि पूजा की ढाल मे बताया हे की….
“जिम जिम ए गीरि भेटिये रे, तिम तिम पाप पलाय सलुणा”
अर्थार्थ जब जब हम गिरिराज के दर्शन करते है। गिरिराज की यात्रा करते है तब तब हमारे पापो का कर्मो का नाश श्रय होने लगता है। ऐसे परम उपकारी गिरिराज की हम सांसारिक मजबूरी से बार-बार यात्रा नहीं कर सकते है। इस लिए ज्ञानी पुरुषों ने घर बेठे तीर्थयात्रा का फल लेने का सुगम शार्ट कट मार्ग बताया है यानी जो व्यक्ति प्रातःकाल प्रतिदिन इस तीर्थ की भाव यात्रा करता है उसे तीर्थ यात्रा का फल मिलता है।
नियम
2) जहाँ मोक्षगामी महापुरुषों के पगलिये हो वहा “”नमो सिध्दाणं”” बोलिये।
3) जहाँ देवी-देवताओं की प्रतिमा हो वहाँ “”प्रणाम”” करे।
मेरे ह्रदय की धड़ कनें, प्रभु नाम का ही रटन करे।।
हे पास मेरे क्या प्रभु, जो आपको अर्पण करू।
ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को, भाव से वंद।।
स्तुति
ध्यान रखिये भाव यात्रा करते समय किसी भी प्रकार की असधना से बचे। अब आप भव्यजीवो अपने स्थान पर बेठे-बेठे अनुभव करे की आप पलीताणा शहर की धर्मशाला मे ठहरे है । आप सभी पालीताणा गये होगें तॊ बस उस पल का स्मरण में लाइए। अब आप धर्मशाला से पूजा की जोड व अष्टप्रकारी पूजा की सामग्री ले कर खुले पेर यात्रा शुरु करे।
तलेटी रोडआनेवाले जिनालयों को “नमॊ-जिणाणं” करें। अब गिरिराज के पास पहुंचेगे दाए हाथ की तरफ आगंम मन्दिर है यहाँ पर नमो जिणाणं करे। अब आगे गिरिराज के पास पहुँचते ही “अधिष्टायक देव” कवड यक्ष की को प्रणाम करे।
सिध्दाचल समरुं सदा, सोरठा देश मोझार । मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार ।।
एकेकु डगलुं भरे, शेत्रुजा समिति जेह । ऋषभ कहे भव क्रोडना, कर्म खपावे तेह ।।
शत्रुंजय समो तीरथ नहीं, ऋषभ समो नहीं देव । गोतम सरीखा गुरु नहि वळी वळी वंदु तेह ।।
सिध्दशिला जय तलेटी
प्रथम चैत्यवंदन करे।
जय तलेटीश्री आदिनाथ दादा आदि कॆ 11 देहरियों को नमो जिणाणं करे। अब शत्रुंजय की प्रथम पगति को वंदन कर यात्रा आरंभ करे।
बाये हाथ की तरफ “श्री धर्मनाथजी” के जिनालय मे नमो जिणाणं करें। दाहिनी तरफ प्राचीन जैन सरस्वती देवी जी को नमन करे। अब आगे बाबूजी के मन्दिर जी मे प्रवेश करे बाई तरफ ऊपर “श्री गोतम स्वामी जी को वन्दन करे व जल मन्दिर जी मे “श्री महावीर स्वामी जी” को नमो जिणाणं करे। मुलनायक “आदिनाथ दादा” को नमो जिणाणं करे। अब बहार निकलने पर दाहिनी तरफ समवसरण मन्दिर जी को नमो जिणाणं करे।
अब ऊपर की तरफ यात्रा शुरु करते है। यहाँ से थोडा आगे चलने पर दाए हाथ की तरफ भरत महाराजा जी के पगलिये है अब यहाँ पर नमो-सिध्दाणं कहे। आगे दाई तरफ “श्री नेमीनाथजी” की देहरी है नमो जिणाणं!।
हिगंलाज नो हडोयात्रा में आगे बढ़ते बढ़ते अब हम पहुँच गए है हिंगलाज के हडे पर यहाँ माँ अम्बिका का रूप “हिगंलाज माता” को प्रणाम करते है। यहाँ की एक प्रसिद्ध कहानी है: एक समय हिंगुल नामक राक्षस गिरिराज पर चढ़ने वाले यात्रियों पर उपद्रव करता था। इस कारण से किसी तपस्वी संत पुरुष ने स्वतप और ध्यान के प्रभाव से माँ अम्बिका देवी को प्रसन करके कहा यह हिंगुल राक्षस जो यात्रियों को परेशान करता है। उसे तुम दूर करो ताकि यात्रीगण की सुखपूर्वक गिरीराज कि यात्रा कर सके और माँ अम्बिका देवी ने उस राक्षस के साथ युद्ध करके उसे परास्त किया। तब राक्षस ने देवी की शरण स्वीकार कर निवेदन किया की हे माँ आज से आप मेरे नाम से जानी जाओ और इस तीर्थ क्षेत्र में मेरे नाम की स्थापना करो। तभी से अम्बिका देवी यहाँ हिंगलाज माता के रूप में पूजी जाने लगी।
श्री शत्रुंजय महातीर्थ के जितने गुणगान किये जाएँ वे कम है। अब भाव यात्रा मे आगे की ओर प्रस्थान करते है प्रभु की भक्ति में झूमते हुए गाते हुए।
सिध्दाचल शिखरों दिवो रे आदेश्वर अलबेलो रे
अब हम पहुंचे है श्री कलिकुण्ड पाश्र्वनाथ जी की देहरी पर नमो जिणाणं कहिये। आगे नये रास्ते से उपर जाने पर बाई तरफ चार शाश्वत जिन की देहरियो पर नमो जिणाणं करे। दाई तरफ श्री पूज्य जी की टुंक के अन्दर चोबीसो भगवान की केवलज्ञान की मुद्रा मे व्रक्ष सहित चोबीस दहरी पर नमो जिणाणं करे।
- अब आगे भव्य देहरी मे पद्मावती माता जी व मणिभद्र जी को प्रणाम करे।
- दाएं हाथ की तरफ द्राविड व वारिखिल्ल जो दस करोड़ मुनियों के साथ (कार्तिक सुदी पूर्णिमा) के दिन मोक्ष गये थे उनकी की देहरी पर नमो-सिध्दाणं करे।
- आगे जाने पर रामचंद्र व भरत (दशरत राजा के पुत्र) जो 3 करोड़ मुनियों के साथ श्री शत्रुंजय के ऊपर सिद्धपद को प्राप्त हुए थे उनकी देहरी पर नमो-सिध्दाणं करे।
- बाएँ हाथ पर नमि विनमि दो विध्याधर राजा जो दो करोड़ साधु के साथ (फागण सुदी-10) के दिन मोक्ष गये उन्हें नमो-सिध्दाणं करे।
- अब आगे हनुमान धारा मे नमो-सिध्दाणं करे।
नवटुंकअब हमारी यात्रा नवटुंक के रास्ते के यहा पर आ गये है। यहाँ से 2 रास्ते है एक जो सीधा रामपोल जाता है और दूसरा नवटुंक की और अब हम यहाँ से सीधे न चलकर नवटुंक की ओर प्रस्थान करेंगे।
चोमुखजी
श्री आदिनाथ जी को
नमो जिणाणं
छीपावसही
श्री आदिनाथ जी को
नमो जिणाणं
साकरवसी
श्री चिंतामणि पार्श्र्वनाथजी को
नमो-जिणाण
नंदिक्ष्वर द्विप
श्री बावन जिनालय को
नमो-जिणाण
हेमा बाई
श्री अजितनाथ जी को
नमो जिणाणं
प्रेमा भाई मोदी
श्री आदिनाथ जी को
नमो जिणाण
बाला भाई
श्री आदिनाथ जी को
नमो जिणाणं
मोती शाह शेठ
श्री आदिनाथ जी को
नमो जिणाण
जय जय श्री आदिनाथ की गूंज के साथ नवमीं टुंक मे जाते हुए वाघन पोल मे प्रवेश करते है।
श्री शांतिनाथ जिनालय नमो जिणाणं कर दूसरा चैत्यवंदन करे।
अब यहा से आगे चलकर बाएँ हाथ निचे उतरने पर श्री संघ रक्षिका चक्रेक्ष्वरी माता जी को प्रणाम कर आगे वाघेक्ष्वरी देवी पद्मावती माता जी व निर्वाण देवी को प्रणाम करे। अब उपर चलने पर “कवडयक्ष” की देहरी को प्रणाम करे। अब उपर चलने पर दोनो तरफ सैंकडों मन्दिर है सभी मन्दिरों को नमो जिणाणं करते हुए आगे बढे
हाथी पोल चढते ही दादा श्री आदिनाथ जी के भव्य दरबार को देखते ही मन रोमांचित हो जाता है। जय जय श्री आदिनाथ की गूंज के साथ कोई दादा की भक्ति में मग्न है तो कोई अपनी क्रियाओ में….
आदिमं प्रथिवीनाथ मादिमं निष्परिग्रहः।
आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः।।
अब दादा के दरबार की 3 प्रदक्षिणा करे साथ ही साथ आने वाले मंदिर सहस्त्रकुट मंदिर, समसवरण मंदिर, सम्मेदशिखर, अष्टापद चोमुख प्रतिमाओं एवं सभी भव्य प्रतिमाजी के दर्शन करे नमो जिणाणं कहे।
रायण पगला – नमो-जिणाण
तीसरा चैत्यवंदन करे।
पुंडरिक गणधर – नमो-सिध्दाणं
चौथा चैत्यवंदन करे।
अब अपनी यात्रा का वह श्रण आ गया है हम सभी को बेसबरी से इंतजार था। नमो-जिणाणं कहते हुए आदेश्वर दादा का जयकारा लगते हुए मेरे साथ आदिनाथ भगवान की जय लगते हुए पूजा के वस्त्रों मे दादा आदिनाथ की अष्टप्रकारी पूजा
जल, चंदन, पुष्प, धुप, दीपक, अक्षत, नैवेध, फल, करे। और ऐसी भावना भाय की है दादा मेरे रोम रोम में मेरी हर स्वास में आप बस जाओ में इस जगत का दुखुयारा आपको अपना सबकुछ मानकर आपकी शरण में आया हूँ मुझे इस संसार रूपी माया से बहार निकले का रास्ता दिखो मुझे मोक्ष की प्राप्ति कराओ।
श्री आदिनाथ जिनेश्वर – नमो-जिणाण
पाँचवा व अंतिम चैत्यवंदन करे।
अब निचे कि ओर प्रस्थान करते हुए दादा से विदा ले “रजा आपो हवे दादा हमारी वात थई पूरी…” इसी धुन में सामने पुंडरिक स्वामी जी को नमो-सिध्दाणं, दोनों तरफ आने वाले समस्त भगवान जी को नमो जिणाणं ऒर समस्त देवी-देवताओं को प्रणाम करते हुए राम पोल आने पर मन में भावना भाते हुए की हे आदेश्वर दादा जल्द ही मुझे फिर दर्शन देना। निचे “जय तलेटी” पर आकर गिरिराज को भाव पूर्वक नमन करे ओर नमो-जिणाण कहे।
श्रैणिक राजा जी ने अपनी संपत्ति का बखान किया की 1 हाथी 1 हजार योजन तक चलने मे जितने कदमरखता है उन प्रत्येक कदम पर मे 1 हजार स्वर्ण मुद्रा रख सकता हूँ इतनी मेरी संपत्ति है। यह बात सुनकर हम चकित रह जाते है। प्रथम तिर्थंकर भगवान श्री ऋषभ देव जी कहते है की शत्रुंजय महातीर्थ के संमुख चलने मे एक, एक कदम चलने पर एक करोड़ पापकर्मो का क्षय होता है इतनी कर्म निर्जरा होती है। 14 क्षेत्र मे इस भव्य तीर्थधिराज के एसें अनुपम प्रभाव सुनकर भव्य जीवों मे भक्ति उमड जाती है।
मुझ बालक से भाव यात्रा करते समय कोई आसदना हूँ हो कोई गलत हुई होतो क्षमा करें। मिचछामिं-दुक्कडम
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