एक वह जमाना था, अब पैदल ही तीर्थ यात्रा करने की परिपाटी थी, अथवा तो बैलगाडी द्वारा यात्रा की जाती थी । आज भी ऐसे कई बूढे-बुजुर्ग मौजूद हैं, जिन्होंने बैलगाड़ी जोड़कर यात्रा कीं थी। पहले तो बस, ट्रेन या टैक्सी जैसे वाहन न होने से पैदल या बैलगाड़ी अथवा घोडागाडी से ही यात्रा होती थी, जिससे विराधना भी कम होती थी।
धीरे-धीरे जमाना बदलता गया व विज्ञान ने वाहनों का ढेर लाकर रख दिया। अरे! अब तो सड़क पर इन्सान के लिये पैदल चलने की जगह भी नहीं रही। हर घडी सड़क पर वाहन दौड़ते ही रहते हैं। धरती वाहनों से भरी है और आकाश विमानों की घर्राहट से गूँज रहा है। अब तो एअर टेक्सीओं (Air Taxies) के आगमन कीं बातें भी हो रही हैं। आने वाले कल में यदि आकाश में ट्राफिक जाम होने की नौबत जा पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं।
वाहनों के बढने के साथ-साथ वाहनों द्वारा तीर्थ यात्रायें भी बढ़ी। अब तो दूर-सुदूर के, अन्दर में बसे हुए तीर्थों में भी लोग जाने लगे हैं। अब तो तीर्थों के व्यवस्थापक भी सचेत बन गये हैं। अधिकतर तीर्थों में यात्रियों को अच्छी सुविधाएँ मिलने लगी हैं । श्रावक संघ में दान का प्रवाह बढ़ा हैं, जिसकी बदौलत तीर्थों में सुविधाएँ बढ़ी हैं और करोडों रुपयों कीं लागत से कई नये तीर्थों का भी निर्माण हुआ है। इस प्रकार: –
- तीर्यं यात्राएँ बढी हैँ।
- तीर्थ बढे हैं।
- तीर्थों की सुविधायें बढी हैं।
- और श्रावक संघ में उदारता भी बढी हैं।
इस बढावे से खुश मत हो जाना क्योंकि : –
- तीर्यंयात्राएँ बदने के साथ- साथ आशातनाएँ भी बढी हैँ।
- तीर्थ बढे हैं, तो साथ ही साथ गैर हिसाब-किताब भी बढे हैं।
- तीर्थों में सुविधाएँ बढ़ने के साथ ही साथ उन सुविधाओं का दुरुपयोग भी बढ़ा है।
- उदारता बढने के साथ-साथ सिर्फ नाम या कीर्ति कीं लालसा व सिर्फ पैसे देकर छूट जाने की वृति भी बढी हैं। इसीलिये तो तीर्थ चिंता का विषय बने हैं।
जब भी आप लोग सपरिवार तीर्थ यात्रा पर जाते हों, तब एक बात तो अवश्य याद रखिये कि हम तीर्थस्थान में त्तीर्थयात्रा करने आये हैं, सैर-सपाटा करने नहीं। संसार सागर तिरने के लिये जाए हैं, डूबने के लिये नहीं।
छुट्टियों में तीर्थों में आने वाले कई प्रवासियों को मैंने यथेच्छ व स्वच्छद वर्तन करते हुए देखा हैं। कई तो शायद तीर्थयात्रा के बहाने सैर-सपाटा ही करने जाते हैँ। कुछ तो हवा के बदलाव के लिये या स्वास्थ्य सुधारने जाते है। अरे भाई । तीर्थ यात्रा के अतिरिक्त अन्य आशय से तीर्थ में आकर धर्म स्थानों का उपयोग करके अपने पाँवों पर स्वयं ही क्यों कुल्हाडी मारते हो? अपने हाथों आत्मा को दुर्गति में क्यों पहुँचाते हो?
आजकल के युवक-युवतियों कीं तो बात ही क्या? न तीर्थों कीं आशातना का भान, न घर्मं का ज्ञान, न सदगुरु का समागम! वे तो तीर्थस्थलों में भी आकर जुए, शराब से लेकर विषय सेवन तक का कौन-सा पाप नहीं करते? शत्रुंजय माहात्म्य नामक ग्रंथ में कहा गया है कि इस तीर्थ में आकर स्व-स्त्री के साथ अब्रह्म सेवन करने वाला तो नीच से नीच इन्सान से भी गया बीता है। तो फिर परस्त्री सेवन कीं तो बात ही क्या? मेरे शब्द शायद आपको कड़क लगेंगे, परन्तु रहा नहीं जाता, अत: कहना ही पड़ता है कि “जो लोग तीर्थ स्थानों में आकर भी सीधे न रह सकते हों, उन्हें धर्मं स्थानों को अपवित्र बनाने के लिये आने कीं कोई जरूरत नहीं ”
तीर्थ में तो तीर्थ कीं मर्यादा का पालन करना ही होगा| सब नीति नियमों का उहुंघन करके यात्रा करना अर्थात भव यात्रा को बढ़ाना। इसीलिये पैसे का पानी करके व्यर्थ ही ऐसे कर्म बांधना अब तो बंद करो ना
यह मत भूलिये कि अन्य स्थानों में किया गया पाप तीर्थस्थान में आकर परमात्मा कीं सच्ची भक्ति करने से क्षय हो जाते हैं, परन्तु तीर्थरथान में किया गया पाप वज्रलेप के समान बन जाता है। तीर्थ में सेवन किया गया पाप अपना विपाक बताए बिना नहीं रहता। इसीलिए ऐसा कुछ भी करने से पहले जरा सावधान बनकर शान्त चित्त से विचार कीजिएगा।
कुछ अमीर लोग बस या ट्रेन द्वारा यात्रा संघों का आयोजन करके अपने स्वजनों व परिचितों को यात्रा कराते हैं। उनका आशय अच्छा है, परन्तु इसमें भी आगे-पीछे का विचार करना जरूरी है। तीर्थयात्रा के नियमों का पालन ठीक से होना चाहिये। आशातना न करके विधिपूर्वक यात्रा कीं जाय तो अवश्य लाभ होता है। परन्तु सिर्फ मौज-मजा, हांसी-मजाक व मनचाहे वर्तन से यात्रा की जाय, तो इस यात्रा का कोई मतलब नहीं। दुनिया तो दीवानी है। ताली बजाकर वाह-वाह करें, तो फूलने कीं कोई जरूरत नहीं। पात्रा में शामिल करने से पूर्व यात्रीको के पास फार्म भरातें वक्त कुछ नियमों का पालन करने की तैयारी दर्शाने पर ही उन्हें यात्रा में शामिल करना चाहिये।
तीर्थ में जाने के बाद यदि ब्रह्मचर्य का पालन न करना हो, रात्रि भोजन करना हो, अभक्ष्य खाना हो, पूजा न करनी हो और सैर-सपाटे ही करने हो, तो बेहतर है कि वह घर में ही रहें।